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ग्राम सड़कों की दुर्दशा पर ग्रामीणों का फूटा गुस्सा- गेरवानी क्षेत्र में उद्योगों के खिलाफ पुनः आर्थिक नाकेबंदी, भारी वाहनों की आवाजाही ठप

रायगढ़ 9 अक्टूबर 2025। बेशर्मी और ढीठाई की भी हद होती है — जिले के गेरवानी क्षेत्र में स्थापित करोड़ों-अरबों की नामी कंपनियाँ अपनी साख को ताक पर रख स्थानीय ग्राम पंचायतों की सड़कों का बेहिचक उपयोग कर रही हैं। नतीजतन ग्रामीणों का आवागमन मुश्किल हो गया है। जर्जर सड़कों पर बाइक सवारों का निकलना तक दूभर हो चुका है, वहीं स्कूली बच्चों को भी आने-जाने में भारी परेशानी का सामना करना पड़ रहा है।

ज्ञात हो कि बीते जुलाई माह में ग्राम लाखा और चिराईपानी के ग्रामीणों तथा जनप्रतिनिधियों ने खराब हो चुकी कच्ची सड़क की मरम्मत की मांग को लेकर आर्थिक नाकेबंदी की थी। उस समय कार्यपालक दंडाधिकारी अनुराधा पटेल मौके पर पहुँची थीं और आंदोलनरत ग्रामवासियों के समक्ष संबंधित उद्योगों — सुनील इस्पात, महालक्ष्मी कास्टिंग, वजरान इंडस्ट्रीज, श्री ओम रुपेश, रियल वायर आदि के प्रबंधकों को बुलवाकर लिखित में समझौता कराया गया था। समझौते के अनुसार 15 दिनों के भीतर गिट्टी, मुरूम और बोल्डर डालकर सड़क को चालू स्थिति में लाने की बात कही गई थी।

ग्रामीणों ने प्रशासन के समक्ष उद्योग प्रबंधकों के लिखित वादे पर भरोसा जताते हुए आंदोलन समाप्त कर दिया था। किंतु 15 दिन नहीं, बल्कि ढाई महीने बीत जाने के बाद भी सड़क की स्थिति जस की तस बनी हुई है।

सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार, सुनील इस्पात एंड पॉवर लिमिटेड द्वारा सड़क के कुछ हिस्से में केवल औपचारिकता निभाई गई, जबकि बाकी उद्योगों ने कोई दिलचस्पी नहीं दिखाई। उद्योग प्रबंधकों के इस उदासीन रवैये से क्षुब्ध ग्रामीणों ने आज पुनः मोर्चा खोल दिया। सुबह 10 बजे से ग्रामीणों ने इस मार्ग पर ट्रक, डंपर जैसे भारी वाहनों का आवागमन रोक दिया, जिसके कारण रात तक वाहनों की लंबी कतारें मुख्यमार्ग तक पहुँच गईं।

12 घंटे से अधिक समय बीत जाने के बावजूद न तो कोई उद्योग प्रतिनिधि मौके पर पहुँचा और न ही प्रशासनिक अधिकारी स्थिति का जायजा लेने पहुंचे। उद्योग प्रबंधन की चुप्पी और वादाखिलाफी न केवल उनकी मक्कारी को उजागर करती है, बल्कि यह भी साबित करती है कि उन्हें शासन-प्रशासन का कोई भय नहीं रह गया है।

ग्रामीणों का सवाल है — क्या इन कंपनियों को जनसुनवाई में इसलिए समर्थन दिया गया था कि वे विकास के नाम पर सड़कें तोड़ें, धूल-धुआँ फैलाएँ और बीमारी बाँटें?
क्या स्कूलों में कॉपी-पेन बाँट देने से सामाजिक उत्तरदायित्व पूरा हो जाता है?

स्थानीय लोगों की जमीन और संसाधनों पर उद्योग चलाने वाले आखिर समाज को क्या दे रहे हैं? ग्रामीणों का कहना है कि “अब सड़क की मरम्मत पूरी होने तक भारी वाहनों का आवागमन पूरी तरह प्रतिबंधित रहेगा।”

फिलहाल, ग्रामीणों ने सख्त रुख अपनाते हुए स्पष्ट कर दिया है कि जब तक सड़क मरम्मत का कार्य पूरा नहीं होता, तब तक आंदोलन जारी रहेगा। अब देखना यह है कि सड़क निर्माण का लिखित वादा करने वाली कंपनियाँ अपना मौनव्रत कब तोड़ती हैं।

बाल विवाह अपराध है, बच्चों के लिए अभिशाप है।

Jane Kurre

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