
रायगढ़ 27 जून 2025!
रायगढ़ जिले के तमनार विकासखंड अंतर्गत ग्राम पंचायत सारईटोला के मुंडा गांव में चल रही अवैध पेड़ कटाई और कोयला खदान परियोजना को लेकर सियासत गरमा गई है। आज कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष दीपक बैज, पूर्व मंत्री उमेश पटेल, विधायक लालजीत राठिया, विद्यावती सिदार, सारंगढ़ विधायक, भिलाईगढ़ विधायक, महासमुंद विधायक और पूर्व विधायक हृदयराम राठिया, प्रकाश नायक सहित कई वरिष्ठ कांग्रेस नेता मुंडा गांव पहुंचे। उन्होंने गांव के जंगलों में जाकर कटे हुए पेड़ों का निरीक्षण किया और ग्रामीणों से मुलाकात कर स्थिति की जानकारी ली।

ग्रामीणों ने स्पष्ट रूप से बताया कि इस खदान के लिए न तो ग्राम सभा की अनुमति ली गई है और न ही किसी प्रकार की वैध प्रक्रिया अपनाई गई है। यह जमीन सामुदायिक वन अधिकार के तहत ग्राम पंचायत को प्राप्त है। इसके बावजूद पेड़ों की कटाई की जा रही है। इस पर दीपक बैज ने कहा कि यह सिर्फ जंगल नहीं, आदिवासियों का जीवन है और कांग्रेस इसे सड़क से लेकर विधानसभा तक लड़ने को तैयार है। उन्होंने घोषणा की कि 13 जुलाई से शुरू होने वाली विधानसभा सत्र में इस मुद्दे को प्रमुखता से उठाया जाएगा।

कांग्रेस नेताओं ने मौके पर ही वन विभाग के एसडीओ को बुलाकर सवालों की झड़ी लगा दी। जब उनसे ग्राम सभा की अनुमति दिखाने को कहा गया तो वे कोई प्रमाण प्रस्तुत नहीं कर सके। इसी तरह तहसीलदार तमनार से भी जब राजस्व संबंधी सवाल किए गए, तब भी कोई संतोषजनक उत्तर नहीं मिला। इस पर उमेश पटेल और दीपक बैज ने नाराजगी जताते हुए चेतावनी दी कि बिना शासकीय प्रक्रिया के अब एक भी पेड़ नहीं काटा जाएगा और जो कट चुके हैं, उन्हें उठाने की भी अनुमति नहीं दी जाएगी।

भाजपा का तीखा पलटवार, सांसद राठिया ने कांग्रेस से पूछे चार तीखे सवाल
इधर, भाजपा सांसद राठिया ने कांग्रेस पर पलटवार करते हुए चार सवाल दागे और कहा कि आज कांग्रेस इस मुद्दे पर राजनीति कर रही है, लेकिन हकीकत कुछ और है:
1. क्या 27 सितम्बर 2019 को कांग्रेस सरकार ने इस परियोजना की जनसुनवाई नहीं कराई थी?
2. क्या 16 अक्टूबर 2019 को पर्यावरण स्वीकृति की सिफारिश राज्य की तत्कालीन कांग्रेस सरकार ने नहीं भेजी थी?
3. क्या 19 अप्रैल 2022 को स्टेज-1 फॉरेस्ट क्लीयरेंस की सिफारिश कांग्रेस सरकार ने नहीं की थी?
4. क्या 23 जनवरी 2023 को स्टेज-2 फॉरेस्ट क्लीयरेंस की सिफारिश भी कांग्रेस की सरकार ने नहीं भेजी थी?
सांसद राठिया ने कहा कि रायगढ़ की जनता को इन सवालों के जवाब चाहिए, क्योंकि असली जिम्मेदार वही हैं जो अब धरना देने निकल पड़े हैं।
निष्कर्ष:
मुंडा गांव का यह मामला सिर्फ पर्यावरण का नहीं, बल्कि आदिवासी हक, प्रशासनिक पारदर्शिता और राजनीतिक जवाबदेही का भी है। अब देखना होगा कि यह लड़ाई सिर्फ विरोध तक सीमित रहती है या वाकई में जमीन पर कुछ बदलाव लाती है।