
पीड़ित ने आत्महत्या का प्रयास किया, सहायक संचालक पर शोषण और दलालशाही के आरोप – एक करोड़ मुआवजे की मांग
जशपुरनगर। मुख्यमंत्री के गृह ज़िले जशपुर में जिला जनसम्पर्क विभाग की कार्यप्रणाली सवालों के घेरे में है। विभाग के अंशकालीन कर्मचारी रविन्द्रनाथ राम ने सहायक संचालक नूतन सिदार पर शोषण, मानसिक प्रताड़ना और वित्तीय गड़बड़ियों के गंभीर आरोप लगाए हैं। लगातार दबाव और अपमान से तंग आकर पीड़ित ने 13 अगस्त को कीटनाशक पीकर आत्महत्या का प्रयास किया।
सफाईकर्मी से कराया हर काम
रविन्द्रनाथ राम वर्ष 2012 से अंशकालीन सफाईकर्मी के रूप में कार्यरत है। उसका कहना है कि उससे सफाई के अलावा वाहन चलाना, कंप्यूटर संचालन, फोटोग्राफी, सरकारी पत्रिका वितरण, डाक लाना-ले जाना और योजनाओं का प्रचार-प्रसार कराया जाता था। यही नहीं, कार्यालय समय के बाद उसे अधिकारी के घर बुलाकर झाड़ू-पोंछा, बर्तन धोने और बिजली के निजी काम भी करवाए जाते थे।
धमकियों से भयभीत रहा कर्मचारी
पीड़ित का कहना है कि विरोध करने पर नौकरी से निकालने और SC/ST एक्ट में फंसाकर जेल भेजने की धमकी दी जाती थी। यही वजह रही कि अन्य कर्मचारी भी डर के कारण चुप्पी साधे रहे।
आत्महत्या का प्रयास और अस्पताल में भर्ती
13 अगस्त की शाम कर्मचारी ने कीटनाशक पी लिया। गंभीर हालत में उसे जिला चिकित्सालय में भर्ती किया गया, जहाँ हाई रिस्क वार्ड में उसका इलाज हुआ। परिजनों से अस्पताल प्रबंधन ने लिखित सहमति भी ली।
वित्तीय अनियमितताओं के आरोप
पीड़ित ने बयान में आरोप लगाया कि कार्यालय में “अजय सिदार” नामक काल्पनिक कंप्यूटर ऑपरेटर दिखाकर वेतन आहरित किया जा रहा है। साथ ही पत्रकारों को भुगतान कराने के लिए उसके निजी बैंक खाते का उपयोग किया गया।
एक करोड़ मुआवजे की मांग
पीड़ित ने स्पष्ट कहा कि उसकी स्थिति के लिए सहायक संचालक पूरी तरह जिम्मेदार हैं। उसने शासन से एक करोड़ रुपये का मुआवजा मांगा है, अन्यथा न्यायालय की शरण लेने की चेतावनी दी है।
पुलिस की भूमिका संदिग्ध
पीड़ित का आरोप है कि घटना की सूचना पुलिस को दी गई, लेकिन अधिकारी के प्रभाव में पुलिस न तो अस्पताल पहुँची और न ही बयान दर्ज किया। उल्टा घटना को दबाने की कोशिश की गई।
समाज और पत्रकार जगत में चर्चा
अस्पताल में पत्रकारों व नागरिकों ने पीड़ित से मुलाकात की। पीड़ित ने 20 अगस्त को थाना प्रभारी को उपचार के दौरान मिली प्रताड़ना की लिखित शिकायत भी की है।
जनता का सवाल – दलालशाही कब रुकेगी?
स्थानीय नागरिकों का कहना है कि यह मामला केवल एक कर्मचारी की पीड़ा नहीं है, बल्कि सरकारी विभागों में बढ़ती दलालशाही और मनमानी की तस्वीर पेश करता है। सवाल उठता है कि जब मुख्यमंत्री के गृह ज़िले में ही ऐसी घटनाएँ सामने आ रही हैं, तो शासन-प्रशासन की निष्पक्षता पर क्या असर पड़ेगा?