छत्तीसगढ़रायगढ,लैलूंगा

बुजुर्ग की पुकार गूंजी सत्ता के गलियारों में, लेकिन इंसाफ अब भी दूर”तहसील में भ्रष्टाचार का बोलबाला-पीड़ित बुजुर्ग न्याय के लिए दर-दर!

बंटवारे की जगह नाम विलोपित, न्याय की जगह नाइंसाफी – तहसीलदार बना ‘दलाल’?

रायगढ़,लैलूंगा 21 जून 2025। राजस्व विभाग का यह ताजा कारनामा देखिए जहां बंटवारे के आवेदन पर ‘बंटवारा’ नहीं हुआ, बल्कि सीधे नाम ही ‘हटा’ दिया गया! कानून को रद्दी की टोकरी में डालकर तहसीलदार ने ऐसा फैसला सुनाया जिसे देख खुद न्याय भी शरमा जाए। लैलूंगा तहसील के ग्राम बगुडेगा के 75 वर्षीय बुजुर्ग किसान हीराराम और उनके सहखातेदारों के हिस्से की जमीन पर अब उनका नाम तक नहीं बचा। और यह सब एक “प्रशासनिक निर्णय” की आड़ में किया गया—जिसकी स्याही अब ‘संदेह की दलदल’ में गहरी डूबी हुई है।

क्या है मामला : ग्राम बगुडेगा, खसरा नंबर 01, रकबा 9.133 हे. की जमीन पर वर्षों से हीराराम और उनके परिवार का वैधानिक स्वामित्व चला आ रहा है। जब उन्होंने इस जमीन के बंटवारे के लिए तहसील कार्यालय में वैधानिक प्रक्रिया अनुसार आवेदन किया, तो उम्मीद थी कि कानून के अनुसार न्याय मिलेगा।

लेकिन जो हुआ वो सिर्फ अचंभित करने वाला नहीं, बल्कि न्याय व्यवस्था पर एक सीधा हमला था—राजस्व प्रकरण क्रमांक 202406040900028/1-27/2023-24 में तहसीलदार ने बंटवारे की बजाय हीराराम और अन्य के नाम ही रिकॉर्ड से विलोपित कर दिए! यानी बंटवारा तो दूर, अब अस्तित्व ही गायब!

किसके इशारे पर चली ‘कलम’? : स्थानीय सूत्रों की मानें तो यह कोई सामान्य गलती नहीं, बल्कि एक सुनियोजित ‘दलाली’ का परिणाम है। तहसीलदार पर आरोप है कि उन्होंने यह निर्णय किसी प्रभावशाली व्यक्ति के इशारे पर सुनाया — ताकि पीड़ितों को उनकी ही जमीन से बेदखल किया जा सके। और जब मामला एसडीएम कोर्ट पहुंचा और स्थगन आदेश जारी हुआ, तब भी विपक्षी खुलेआम जमीन बेचने की धमकी दे रहे हैं।

क्या प्रशासन अब सिर्फ रसूखदारों की रखैल बनकर रह गया है?

राजस्व विभाग का मौन मिलीभगत या मजबूरी?हीराराम और अन्य पीड़ितों ने एसडीएम से लेकर कलेक्टर और राजस्व मंत्री तक सभी जिम्मेदार अधिकारियों को लिखित में शिकायत दी है। लेकिन अभी तक न कोई जवाब, न कोई जांच, और न ही तहसीलदार के खिलाफ कोई सख्त कार्रवाई।

क्या वाकई शिकायतों की फाइलें राजस्व विभाग के कूड़ेदान में ही जाती हैं? या फिर कोई ‘अदृश्य हाथ’ इन्हें दबाने में लगा है?

प्रशासन की नीयत या नीति : यह सवाल अब केवल हीराराम का नहीं, बल्कि हर उस नागरिक का है जो न्याय की आस में सरकारी दफ्तरों के चक्कर काटता है। अगर तहसीलदार जैसे अधिकारी खुलेआम कानून को कुचलते रहें और पूरा विभाग चुप्पी साधे खड़ा रहे, तो फिर आम जनता कहां जाए?

आखिर में…अगर अब भी इस मामले में तहसीलदार के खिलाफ कार्रवाई नहीं होती, तो यह छत्तीसगढ़ के राजस्व तंत्र की सबसे शर्मनाक विफलताओं में एक मानी जाएगी।

कहीं ऐसा न हो कि हीराराम जैसे किसान की पुकार सत्ता के गलियारों में हमेशा के लिए गुम हो जाए – और ‘न्याय’ शब्द बस किताबों में ही रह जाए।

👉 सवाल साफ है : क्या लैलूंगा के तहसील कार्यालय में ‘फैसले’ बिकते हैं? या फिर ‘कानून’ अब सिर्फ रसूखदारों की जागीर बन चुका है?…

बाल विवाह अपराध है, बच्चों के लिए अभिशाप है।

Jane Kurre

जनदर्पण - समाज का आईना, एक स्वतंत्र, निष्पक्ष और जनहितैषी न्यूज़ पोर्टल है। इसका उद्देश्य है समाज के हर वर्ग की आवाज़ को सामने लाना और लोगों तक सच्ची व तथ्यपूर्ण खबरें पहुँचाना। यह पोर्टल केवल खबरें देने का माध्यम नहीं, बल्कि समाज की वास्तविक तस्वीर दिखाने का प्रयास है। मिशन- भ्रष्टाचार, नशा और सामाजिक बुराइयों के खिलाफ निरंतर जागरूकता फैलाना।

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *